Wednesday, January 12, 2011

मेरी ख्वाहिश पर एक लेख


सितारे तोड़ना या चाँद छूना नहीं चाहता.......
बस सितारों को निहारने की खवाहिश है ....
पंख फेला कर आसमाँ समेटना कौन नहीं चाहता .......
पर मेरी आसमाँ में सिमट जाने की ख्वाहिश है ……
इमारतों का गुबंद बनने का होंसला है ………
पर अब नीव का पत्थर बनने की ख्वाहिश है ……
पता है दुनिया की भीड़ से अलग हूँ ………
पर अब इस भीड़ में गुम हो जाने की ख्वाहिश है..........
इस जहाँ के अहसान इतने हो गए हम पर ……
अब अहसान फरामोश होने की ख्वाहिश है ……….
पत्थर दिल जोश था हिम्मत थी हम में ….
अब अपने आप से डर जाने की ख्वाहिश है ……..
जिंदगी हँसने का नाम है सब से कहा था ……..
अब अकेले में रोने की ख्वाहिश है ……………….

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